जेसीबी इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक दीपक शेट्टी ने कहा कि भारत के निर्माण उपकरण (सीई) निर्माता, सड़कों और राजमार्गों से मिलने वाले नए अवसरों पर सबसे ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। परंपरागत रूप से सड़क और राजमार्ग क्षेत्र ही इस उद्योग का सबसे बड़ा विकास इंजन रहा है, जो कुल बिक्री का करीब 40 प्रतिशत योगदान देता है।
उद्योग संगठन आईसीईएमए के अध्यक्ष के रूप में शेट्टी ने बताया कि वित्तीय वर्ष 23 और शुरुआती वित्तीय वर्ष 24 में बिक्री बहुत अच्छी रही थी। लेकिन हाल के महीनों में गति धीमी हुई है। आईसीईएमए के आँकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 26 की पहली तिमाही में बिक्री पिछले साल की तुलना में 1 प्रतिशत घटी और पिछली तिमाही से 30 प्रतिशत कम रही।
शेट्टी ने कहा, “यह अस्थायी गिरावट है। लंबी अवधि का नजरिया मजबूत है क्योंकि सरकार भारतमाला और गति शक्ति जैसी योजनाओं के तहत राजमार्ग विकास पर जोर दे रही है। राज्य चुनावों के बाद नीतिगत माहौल स्थिर हो गया है। हमें उम्मीद है कि वित्तीय वर्ष 26 की दूसरी छमाही में एनएचएआई और राज्य एजेंसियाँ निविदाएँ तेजी से जारी करेंगी, जिससे माँग फिर से बढ़ेगी।”
भारत की बड़ी अवसंरचना योजनाएँ – राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (एनआईपी) और गति शक्ति – से बड़े अवसर खुलेंगे। लेकिन शेट्टी ने बताया कि जमीन पर काम हमेशा घोषित योजनाओं की गति से आगे नहीं बढ़ पाता। जमीन अधिग्रहण, वित्तीय मंजूरी और अलग-अलग एजेंसियों के बीच तालमेल जैसी वजहों से देरी होती है।
जैसे ही परियोजनाएँ वास्तविक क्रियान्वयन में आती हैं, भारत में मिट्टी खोदने वाली मशीनों और अन्य निर्माण उपकरणों की माँग अचानक बहुत बढ़ जाती है। शेट्टी ने कहा कि आईसीईएमए नीति निर्माताओं के साथ लगातार बातचीत कर रहा है ताकि परियोजनाएँ समय पर शुरू हों और उद्योग का भरोसा बना रहे।
निर्माण उपकरण उद्योग के लिए सबसे बड़ी चुनौती वित्तीय पहुँच है, खासकर एमएसएमई और ग्रामीण ठेकेदारों के लिए। शेट्टी ने कहा, “सस्ते कर्ज की सीमित उपलब्धता छोटे और नए उपयोगकर्ताओं के लिए बड़ी रुकावट बनी हुई है।”
आईसीईएमए की फाइनेंस पैनल के माध्यम से उद्योग बैंकों और एनबीएफसी के साथ मिलकर एमएसएमई के लिए विशेष ऋण योजनाएँ तैयार कर रहा है। साथ ही, मशीनों के किराये पर उपलब्ध होने की व्यवस्था को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि ठेकेदारों को एकमुश्त भारी खर्च न करना पड़े। लेकिन इसके साथ बेहतर ऋण उपलब्धता और लचीली योजनाएँ भी बेहद जरूरी हैं। छोटे ठेकेदारों को वित्तीय सहायता मिलने से बिक्री की रफ्तार लंबे समय तक बनी रहेगी।
शेट्टी ने कहा कि अब 90 प्रतिशत से ज्यादा उपकरण भारत में ही बन रहे हैं और 50 से 60 प्रतिशत पुर्ज़े भी देश के भीतर से लिए जाते हैं। इससे यह साबित होता है कि भारत में बने निर्माण उपकरणों को देश और विदेश दोनों जगह ज्यादा स्वीकार्यता मिल रही है।
आईसीईएमए विज़न प्लान 2035 के तहत भारत को एक वैश्विक निर्यात केंद्र बनाने की योजना है। फिलहाल भारत से अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में उपकरण निर्यात हो रहे हैं।
शेट्टी का कहना है, “अगर सही प्रोत्साहन, औद्योगिक क्षेत्रों में ढांचा सहयोग और आसान व्यापार प्रक्रियाएँ मिलें तो अगले 10 सालों में भारत का निर्यात मौजूदा 10 प्रतिशत से बढ़कर 15–20 प्रतिशत तक पहुँच सकता है।”
भले ही इस समय थोड़ी मंदी है, लेकिन शेट्टी का मानना है कि भारत का निर्माण उपकरण उद्योग आने वाले समय में सड़क और राजमार्ग विकास से बड़ा फायदा उठाएगा। भारतमाला, गति शक्ति और राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन जैसी सरकारी योजनाएँ इस क्षेत्र को लंबे समय तक मजबूती देंगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह रफ्तार न केवल भारत में माँग बढ़ाएगी बल्कि विदेशों में भी विस्तार करेगी। उद्योग की ताकत – मजबूत नीतियाँ, बेहतर वित्तीय समाधान और स्थानीय निर्माण – इसे वैश्विक स्तर तक ले जाएगी।
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