भारत में निर्माण उपकरण उद्योग 2025 में तेज़ बढ़त की ओर, निर्यात, स्वच्छ तकनीक और नीति समर्थन से बाज़ार में नया जोश।
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PV
By Pratham
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भारत के निर्माण उपकरण उद्योग ने वर्ष 2024–25 में स्थिर बढ़त दिखाई। इस दौरान कुल 140,191 उपकरणों की बिक्री हुई, जो पिछले वर्ष की तुलना में 3% अधिक रही। निर्यात माँग में 10% की बढ़त देखी गई। घरेलू स्तर पर बढ़त सीमित रही, इसका कारण चुनावों की देरी और नियमों में बदलाव रहा। फिर भी बाज़ार स्थिर बना रहा। अब 2025–26 के लिए तस्वीर और भी मज़बूत दिखाई दे रही है।
निर्यात ने बढ़त की अगुवाई की। कुल 13,230 इकाइयों में से 88% निर्यात गैर-SAARC देशों को हुआ। घरेलू बिक्री में 2.7% की बढ़ोतरी हुई। इस माँग में 35% योगदान पश्चिम भारत का रहा। मार्च 2025 में गतिविधियाँ तेज़ रहीं। उस महीने 14,739 इकाइयों की बिक्री हुई, जो पिछले महीने से 15% अधिक रही। वित्तीय वर्ष के अंत में ख़रीदारी में तेज़ी आई। फिर भी कुछ दबाव बना रहा – मूल उपकरण निर्माताओं को स्टील की बढ़ती कीमतों, भुगतान में देरी और सख्त वित्त व्यवस्था का सामना करना पड़ा।
विभागवार स्थिति इस प्रकार
भूमि खोदने वाले उपकरणों ने 71% हिस्सेदारी के साथ बाज़ार में बढ़त बनाई। बैकहो लोडर और क्रॉलर खुदाई मशीनें इस समूह का 90% हिस्सा रहीं। बैकहो लोडर की बिक्री 53,133 इकाइयों तक पहुँची, और क्रॉलर खुदाई मशीनों की 35,816 इकाइयाँ बिकीं। इनकी माँग देश और विदेश दोनों में बढ़ी।
कंक्रीट उपकरणों में 3% की बढ़त रही। इनमें मिक्सर की बिक्री 8,577 इकाइयों की हुई। निर्यात 689 इकाइयों तक पहुँच गया, जो पहले से दुगना था। इससे भारतीय कंक्रीट मशीनों की वैश्विक माँग का संकेत मिलता है।
सामग्री उठाने वाले उपकरणों की बिक्री में 9% की गिरावट आई। पिक-एंड-कैरी क्रेन में 7% की कमी हुई और टेलीहैंडलर की बिक्री में 37% की भारी गिरावट आई।
सड़क निर्माण उपकरणों में 3% की वृद्धि देखी गई। घरेलू माँग में कमी आई, लेकिन निर्यात में 136% की बढ़त ने इस क्षेत्र को संभाला। मिट्टी को दबाने वाले उपकरण और रोलर इस सुधार के मुख्य कारण बने।
सामग्री प्रसंस्करण उपकरणों की बिक्री में 4% की कमी आई, इसका कारण कम ऑर्डर और घटता निर्यात रहा।
महत्वपूर्ण बदलावों के संकेत
अब "सेवा के रूप में उपकरण" का चलन बढ़ रहा है। इसमें ग्राहक पूरे उपकरण खरीदने की बजाय इस्तेमाल के आधार पर किराये पर लेते हैं। इससे लागत नियंत्रण और लचीलापन मिलता है। वाल्वो सीई जैसी कंपनियाँ इस मॉडल को बढ़ावा दे रही हैं।
स्वचालन (ऑटोमेशन) अब राजमार्ग परियोजनाओं में आ रहा है। एआईएमसी पहल के तहत जीपीएस-आधारित ग्रेडर और स्मार्ट कॉम्पैक्टर लाए गए हैं। इससे लखनऊ-कानपुर एक्सप्रेसवे जैसी परियोजनाओं में गुणवत्ता और गति दोनों में सुधार हुआ है।
बिजली से चलने वाली मशीनों की माँग भी बढ़ रही है। वाल्वो की ईसी400 और ईसी500 हाइब्रिड मशीनें 15% तक कार्बन उत्सर्जन घटाती हैं और 17% ईंधन बचत करती हैं। जेसीबी की 19सी-1ई मशीनें शहरों में माँग में हैं। बेहतर बैटरी और चार्जिंग सुविधा से इनका उपयोग बढ़ रहा है।
वर्ष 2025 में सीईवी-वी मानदंड लागू होंगे। इससे ज़्यादातर मशीनों की क़ीमतों में 12–15% बढ़ोतरी होगी। छोटे इंजनों पर असर कम रहेगा, लेकिन बड़े इंजनों के लिए डीज़ल फ़िल्टर और कैटालिटिक रिडक्शन सिस्टम जैसे नए तकनीकी बदलाव जरूरी होंगे। इससे भारत के मानक यूरोप और उत्तर अमेरिका के बराबर हो जाएँगे, जिससे भविष्य में निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
नीति समर्थन से भी माँग को बढ़ावा
केंद्र सरकार के बजट में ₹12 ट्रिलियन का आवंटन बुनियादी ढाँचे के लिए किया गया है। इससे सड़कों, मेट्रो, रेल और शहरी परिवहन क्षेत्रों को लाभ मिलेगा। इन सभी परियोजनाओं में नए उपकरणों की ज़रूरत होगी।
मेक इन इंडिया और पीएलआई योजनाओं से घरेलू निर्माण को बढ़ावा मिल रहा है। इससे आयात कम होगा, सप्लाई में सुधार आएगा और लागत घटेगी। इसके साथ-साथ सतत निर्माण उपकरणों को भी बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्ष
आईसीईएमए का अनुमान है कि निर्माण उपकरणों का बाज़ार 2025–26 में $11 बिलियन तक पहुँच सकता है (वर्तमान में $10 बिलियन है)। वर्ष 2030 तक यह बाज़ार ₹990 बिलियन तक पहुँच सकता है। इसमें बिजली से चलने वाली मशीनें 10–15% तक की हिस्सेदारी ले सकती हैं। वैश्विक स्तर पर भी इस क्षेत्र में 38% की वार्षिक वृद्धि दर का अनुमान है।
भारत में निर्माण तकनीक को अपनाने की गति तेज़ हो रही है। देश तेजी से बदलाव की ओर बढ़ रहा है। मज़बूत निर्यात, नई आधारभूत परियोजनाओं और स्वच्छ तकनीकों के साथ, निर्माण उपकरण क्षेत्र एक बड़े सुधार की ओर अग्रसर है।
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