कुछ कंपनियाँ ऐसी होती हैं जो हालात चाहे जैसे भी हों, पीछे नहीं हटतीं। जेसीबी इंडिया भी उन्हीं में से एक है।
अब सोचिए — आप हर साल अमेरिका को हज़ारों मशीनें भेज रहे हैं। सब कुछ बढ़िया चल रहा है। आपकी मशीनें वहाँ की सड़कें, इमारतें बना रही हैं। और फिर अचानक — अमेरिका 25% टैक्स लगा देता है। झटका लगता है ना? कोई भी कंपनी होती, तो घबरा जाती। शायद रुकी रहती। कुछ तो कम कर देती।
लेकिन जेसीबी ने ऐसा नहीं किया।
उल्टा उन्होंने दुनिया का नक्शा उठाया... और नए रास्ते तलाशने शुरू कर दिए।
मेरे हिसाब से अमेरिका का यह टैक्स सीधा-सीधा अपनी घरेलू कंपनियों को फायदा देने के लिए है। चुनाव पास हैं, तो ऐसे फ़ैसले आना आम बात है। पर जेसीबी ने अपनी उम्मीद एक देश पर नहीं टिकाई।
जेसीबी इंडिया के सीईओ और प्रबंध निदेशक दीपक शेट्टी ने भी साफ़ कहा कि यह परेशानी "अस्थायी" है। और मुझे लगता है, यही सोच किसी कंपनी को मुश्किल समय में टिकाए रखती है।
वैसे भी, जेसीबी की मशीनें आज 135 देशों में जाती हैं। सोचिए, एक नहीं... दो नहीं... 135 देश। यही तो असली वैश्विक रणनीति है।
जेसीबी अब भारत और ब्रिटेन के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते की ओर ध्यान दे रहा है। और ये फ़ैसला बिल्कुल सही लग रहा है।
अब जब अमेरिका में बिक्री मुश्किल हो रही है, तो यूरोप में रास्ता खुल रहा है। इस समझौते के बाद टैक्स कम हो जाएगा, जिससे जेसीबी की मशीनें वहाँ और सस्ती पड़ेंगी। और जैसे-जैसे कीमतों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, बिक्री भी तेज़ होगी।
नेपाल और श्रीलंका जैसे छोटे देश भी अब जेसीबी की मशीनें खूब खरीद रहे हैं। पिछले साल नेपाल में सिर्फ 250 मशीनें बिकी थीं। इस साल उम्मीद है कि ये संख्या बढ़कर 600–700 हो जाएगी। वहीं श्रीलंका में भी बिक्री 500–600 के बीच पहुँच सकती है।
अब बात करें अफ्रीका की — तो वहाँ जेसीबी ने पिछले 3 सालों में अपना व्यवसाय तीन गुना कर लिया है। इथियोपिया, केन्या, युगांडा, अंगोला जैसे देशों में विकास तेज़ है, और वहाँ के निर्माण कार्यों में जेसीबी का नाम तेजी से फैल रहा है।
ये दिखाता है कि वैश्विक विकास सिर्फ बड़े देशों में नहीं होता — कई बार एक छोटी मशीन किसी गाँव में सड़क बना रही होती है, वहीं असली बदलाव हो रहा होता है।
अब अगर भारत की बात करें, तो यहाँ की निर्माण मशीनों की बिक्री थोड़ी धीमी हो गई है। इस साल विकास दर 3% रही, जबकि पिछले साल ये 20% से ज्यादा थी। चुनाव, सरकारी कामों की धीमी गति, और नए सीईवी V उत्सर्जन नियमों ने इस पर असर डाला।
जुलाई में बिक्री 33% घटी, और जेसीबी की खुद की बिक्री भी 2293 यूनिट से घटकर 1731 यूनिट रह गई।
लेकिन... और ये "लेकिन" ज़रूरी है — जेसीबी का बाज़ार हिस्सा अब लगभग 50% हो गया है। यानी हर दो में से एक मशीन जेसीबी की है। ये किसी भी कठिन समय में बहुत बड़ी बात है।
जेसीबी ने हाल ही में अपनी स्टेज V मशीनें लॉन्च की हैं, जो ना सिर्फ पर्यावरण के लिए बेहतर हैं, बल्कि उपयोग में भी ज़्यादा फायदेमंद हैं।
इन मशीनों से 14–15% तक ईंधन की बचत होती है, रख-रखाव का खर्च कम आता है, और कुल मिलाकर ग्राहक को बेहतर मुनाफ़ा होता है।
अब तक 20,000 से ज्यादा मशीनें बिक चुकी हैं — और ये बताता है कि लोग इसे अपनाने के लिए तैयार हैं।
मेरे हिसाब से जेसीबी अब तात्कालिक फायदे के पीछे नहीं भाग रही। वो भविष्य की ओर देख रही है। नई बाज़ारों में प्रवेश, नई तकनीक, और व्यवसाय विस्तार ही इनका असली लक्ष्य है।
क्या अमेरिका की कमी तुरंत पूरी होगी? शायद नहीं।
लेकिन अगर आप अफ्रीका में व्यापार तीन गुना कर लें, भारत में सबसे बड़ी हिस्सेदारी बना लें, और यूरोप में नया रास्ता खोज लें — तो आप हार नहीं रहे... आप रास्ता बदल रहे हैं।
जेसीबी इंडिया आज सिर्फ एक मशीन कंपनी नहीं है, यह एक वैश्विक सोच का उदाहरण है।
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